Mustard Farming मौसम में अधिक नमी के कारण सरसों में तना गलन रोग बढ़ा, समय पर बचाव जरूरी
कीटों का प्रकोप फसल में चेपा, सफेद रतुआ, स्टैंग हैड की आशंका
Mustard Farming : महेंद्रगढ़, भिवानी, रेवाड़ी, जींद, रोहतक, सोनीपत और चरखी दादरी में सरसों की खेती ज्यादा की जाती है। सरसों की फसल में चेपा/अल का अधिक आक्रमण दिसंबर के अंतिम और जनवरी के प्रथम पखवाड़े में होता है। ऐसे में बचाव जरूरी है।
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर काम्बोज ने बताया कि बीमारियों की रोकथाम के लिए किए जाने वाले छिड़काव सार्यकाल को 3 बजे के बाद करें। इन दिनों बारिश से मौसम में नमी 87 फीसदी तक पहुंच गई है।
इसके साथ सरसों की फसल में तना गलन रोग का खतरा बढ़ गया है। क्योंकि यह रोग नमी के मौसम में बढ़ता और कई जगहों पर फसलों में रोग के लक्षण दिखाई देने लगे हैं। किसानों को फसल को रोग से बचाव के लिए कृषि वैज्ञानिकों की सलाह लेनी चाहिए। गौर के तकनीकी सहायक डॉ. संदीप बजाज बताते है कि समय रहते कीटनाशकों के छिड़काव से फसल को बीमारी से बचाया जा सकता है।
सरसों में लगने वाली इन बीमारियां की करें रोकथाम
रोपा/अल दरअसल चेपा/अल हल्के पीले-हरे रंग के कीट होते हैं जो पौधे के विभिन्न भागों विशेषक कलियों, फूलों, फलियों व फूलों की टहनियों पर रहकर रस चूसते हैं। सफेद रतुआः यह पतियों की निचली स्तह से शुरू होता है। तने तथा पतियों पर सफेद अथवा पीले क्रीम रंग के कौल से प्रकट होते है। स्टैंगडेंड तने व फूले बेड़ेंगे आकार के हो जाते हैं। इसमें फलियां नहीं बनती और पैदावार में नुकसान होता है। अल्टरनेरिया ब्लाईट पौधे के पत्तों, तनों तथा फलियों पर गोल, भूरे रंग के धब्बे हो जाते हैं। बाद में ये धब्बे काले रंग के हो जाते हैं और इनमें गोल छल्ले से नजर आते हैं। तना जलन क्षेत्र तनों पर लंबे आकार के भूरे जलसिक्ट धब्बे बन जाते है जिन पर बाद में सफेद फफूंद की तरह बन जाती है। ये लक्षण पत्तों तथा टहनियों पर भी नजर आ सकते है। तना गलन रोग से प्रभावित पौधों के तनों को तोड़ के देखने पर तनों के भीतर काले रंग के पिंड़ (एकलरोशिया) दिखाई देते है।
• बिजाई के 45 से 50 दिन बाद कार्बेन्डाजिम दवा को 2 ग्राम. 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। 65-70 दिन के बाद फिर
कार्बन्डाजिम का 0.1 प्रतिशत को दर से दो छिड़काव करें।
-डॉ. रामकरण गौड़, कोट विखणी, कृषि विज्ञान केंद, रोहतक